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असली मोहब्बत

कुछ पंक्तियां एक खास सख्श द्वारा



बची हैं चंद सांसे आखिरी दीदार दे दो

झूठा ही सही मगर एक बार प्यार दे दो



हम तो उम्र भर के मुसाफिर हैं मत पूछ

तेरी तलाश में कितने सफर किए हैं हमने



टूट कर बिखर जाते हैं वो लोग दीवारों की तरह 

जो खुद से भी ज्यादा किसी और से मुहब्बत करते हैं

 

कोई तेरे साथ नहीं तो भी ग़म ना कर

दुनिया में ख़ुद से बढ़कर कोई हमसफर नहीं

 

मुझे मंजू़र थे वक़्त के सब सितम मगर

तुमसे मिलकर बिछड़ जाना, ये सजा ना दो

 

ना हाथ थाम सके ना पकड़ सके दामन

बेहद ही करीब से गुज़र कर बिछड़ गया कोई

 

गुजर गया आज का दिन पहले की तरह

न उनको फुर्सत थी और न हमें ख्याल आया

 

मोहब्बत की मिसाल में, बस इतना ही कहूंगा

बेमिसाल सज़ा है, किसी बेगुनाह के लिए 

 

बहुत देर कर दी तुमने मेरी धड़कनें महसूस करने में

वो दिल नीलाम हो गया जिस पर तुम्हारी कभी हुकूमत थी

 

जिसके होने से मैं ख़ुद को मुकम्मल मानता हूं

मेरे रब के बाद, मैं बस मेरी मां को मानता हूं










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